प्रभु शरणम गच्छामि……राजनीति क्या क्या ना कराए…. किसी को रुलाये किसी को नचाए

उत्तराखंड में वर्तमान चुनाव कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और भूतपूर्व मुख्यमंत्री हरीश  रावत के स्वयं  के राजनीतिक जीवन के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन चुका है। इसके साथ ही और उनके परिवार के सदस्यों के राजनीतिक भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण  है ।  अपने आप को उत्तराखंडियत का सबसे बड़ा पुरोधा बताने में उन्हें कभी भी गुरेज नहीं होता यहाँ तक कि उन्होंने पार्टी के टैग के रूप में भी उत्तराखंड और उत्तराखंडियत को बहुत महत्व दिया है। उत्तराखंड के गाँव, गाड गदेरों की जितनी जानकारी हरीश रावत के पास है वो शायद ही किसी और नेता के पास हो। इसीलिए पार्टी को  सबसे ज्यादा उम्मीदें भी सिर्फ हरीश रावत से ही हैं। हरीश रावत इन सब को समझते भी  हैं। वो जानते हैं कि बी जे पी की सबसे बड़ी ताकत हिन्दुत्व ही है और बी जे पी द्वारा  एक सोची समझी रणनीति के तौर पर पिछले चुनाव में जुमे की नमाज की छुट्टी का मामला हो या फिर इन चुनावों में मुस्लिम यूनिवर्सिटी का विवादास्पद मसला इन सब से हरीश की मुहिम को बड़ा झटका लग सकता है इसलिए  चार धाम चार काम उत्तराखंड अभिमान नारे के साथ चुनाव में उतरे हरीश रावत को अब खुद  को हिन्दुत्व से जुड़ा दिखाने के लिए ही अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पिछले साल केदारनाथ में एक पुराने  वीडियो को भी जारी करना पड़ा है जिसमें वो केदारनाथ में बाबा का त्रिशूल,डमरू और निषाण घुमाते और नाचते दिखायी दे रहे है। कभी जलेबी तलते, कभी गोलगप्पे खाते,कभी कबड्डी खेलते और कभी क्रिकेट का बल्ला लिए और अब इस वीडियो में भजन गाते और नाचते कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता हरीश रावत को इस उम्र में देखकर लग जाता  है कि यह राजनीति बड़े बड़े नेताओं से क्या क्या नहीं करा देती। मगर दूसरी बातों को नजरअंदाज कर एक बात तो निसंकोच माननी ही होगी कि वास्तव में हरीश रावत के भीतर एक जानदार राजनेता मौजूद है जिनके अंदर अभी भी बहुत ऊर्जा बची है और इसी ऊर्जा ने प्रदेश में पिछले तीन चार वर्षों से  बेदम पड़ी  कांग्रेस को अपने दम पर सरकार बना सकने की स्थिति में भी ला खड़ा कर दिया है।   

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