राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण 2021 में देहरादून क़ो देश में 82 वां स्थान मिला है और स्थानीय सत्ताधारी नेता अपनी पीठ सिर्फ इसलिए थपथपा रहे हैं कि 2020 की राष्ट्रीय रैंकिंग में 124 से 82 अर्थात 42 स्थानों का सुधार हो गया है और दस हिमालयी राज्यों में इसे पहला स्थान मिला है मगर असली सवाल फिर वही है कि इन जैसे सभी सर्वेक्षणों में आखिर असलियत कितनी होती है। सर्वे के नाम पर लाखों करोड़ों खर्च करने के बाद भले ही सर्वे रिपोर्ट में स्थिति कितनी भी बेहतर घोषित हो जाए और रैंकिंग में कितना भी सुधार हो जाए मगर शहर को ग्रीन और क्लीन बनाने के तथाकथित क्रांतिकारी प्रयासों के बाद भी देहरादून की हालत में सुधार होने की जगह स्थिति और बदतर हो चुकी है। सर्वे में स्वच्छता का अर्थ सिर्फ कूड़े कचरे के प्रबंध तक सीमित कर दिया गया है जैसे कि शहरवासी इस मसले पर कितने जागरूक हैं कि उनके क्षेत्र में कूड़े का उठान सही समय पर हो रहा है,शहर में कूड़ा डालने के लिए कूड़ेदान की व्यवस्था कैसी है,कूड़े का निस्तारण कैसे किया जा रहा है और सफाई से जुड़ी कितनी सुविधाएं नागरिकों को उपलब्ध कराई गई हैं। इन सर्वेक्षणों के लिए नगर निगम,प्राइवेट ऐजेंसियाँ किराये पर लेता रहा है और यही ऐजेंसियाँ फर्जी रिपोर्ट तैयार करती हैं। मगर सवाल अर्जी फर्जी का नहीं है ,सवाल सिर्फ यह है कि शहर की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है या नहीं मगर पूरे शहर में घूम कर और चौकस नजरों से ध्यान देकर लगता नहीं कि देहरादून में कुछ बड़ा सुधार आया हो। अब सर्वेक्षण कंपनियां कैसे फ़ोटो में दिखायी दे रहे प्रचार प्रसार करने के तरीके से कागजों में देहरादून को साफ और स्वच्छता रैंकिंग में ऊंची छलांग लगा कर भले ही अपनी और निगम की पीठ थपथपा लें मगर शहर को वास्तव में साफ और स्वच्छ बनाने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है।