अब तो कुछ करो सरकार….हम सभी नागरिक भी बनेंगे जिम्मेदार..

देहरादून/मसूरी
प्रधान संपादक की कलम से

भले ही पिछले वर्ष कोरोना की पहली मगर कम घातक लहर को देश में सही समय पर लॉक डाउन लागू कर काफी हद तक नियंत्रित किया गया था मगर उसके बाद कोरोना टेस्ट कम करके कोरोना संक्रमण के टल जाने का सन्देश देना ही हमें इस दूसरी बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंचा गया. हमारे प्रदेश के ताजा ताजा बने और देहरादून जिले के प्रभारी कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने तो खुलेआम स्वीकार किया है कि पिछली लहर के बाद कोरोना चले जाने की सोच बन जाने के कारण हम सब मस्त हो गए थे.सच तो ये है कि सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी के खेल के कारण हमारा पूरा सिस्टम ख़राब या यूँ कहें कि सड़ गल चुका है. हमारा सिस्टम शायद फाइल में झूठे आंकड़ों से भरे कागजों का पेट भरने तक ही सीमित रह गया है. ये कटु सत्य है कि भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबा हुआ सिस्टम कभी भी सच स्वीकार नहीं कर सकता. उसे तो बस झूठ से मोहब्बत और याराना ही अच्छा लगता है. और इसी आंकड़ों के खेल ने इस दूसरी लहर के प्रति लापरवाही बरतने की भूल कर दी और हालात ऐसे पैदा कर दिए है कि आज फ़ोन पर बजने वाली हर घंटी भी चौंकाने और डराने सी लगी है. मौत का ऐसा विकराल रूप शायद इस आजाद भारत में किसी ने देखा न हो. डराने वाली खबरों से डर कर टी वी देखना तक लोगों ने कम कर दिया है.नदियों में बहती जली अधजली और फेंकी हुयी लाशों की तस्वीरें एक अलग सा खौफ पैदा कर रही हैं और से लाशें किसी फोटोशॉप से बनायी हुयी नहीं हैं बल्कि असली तस्वीरें हैं जो बयान कर रही हैं कि शायद शमशानघाटों पर लाश जलाने के लिए लकड़ियों की भी कमी पड़ रही है और लोग अंतिम संस्कार का खर्चा उठाने में लाचार होकर ऐसा कर रहे है या फिर शमशान घाट में भी लोगों की मजबूरियों का फायदा उठाने वाले लुटेरे तैयार हो गए हैं परन्तु इससे ज्यादा अमानवीय कार्य की कल्पना तो नहीं की जा सकती. वर्तमान नाजुक हालात में सबने देख लिया कि अस्पतालों में कैसा निर्दयी और अमानवीय खेल खेला जा रहा है.सरकारी अस्पतालों की हालत और वहां की व्यवस्थाएं तो सभी के सामने है मगर यहाँ तो बड़े बड़े अस्पतालों में भी एक साथ कई मौतें हो चुकी हैं. हालात इतने गंभीर हैं कि सरकार को साँसें तक विदेशों से मंगानी पड़ रही है. पूरी दुनिया हमें दवाइयां और ऑक्सीजन संयंत्र भेज कर मदद कर रही है. यह भी शायद इसीलिए कि हमारे देश ने भी उनकी मदद करने में कभी कमी नहीं छोड़ी होगी.यहां तक कि आपातकालीन दशा में दूसरे देशों को इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए वैक्सीन तक भेजी और आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा. तब शायद सरकार को देश में इतनी गंभीर आपदा का अंदेशा नहीं रहा होगा या फिर कहीं और चूक हो गयी मगर सच्चाई तो यही है कि इस महामारी के बीच देश के लोगों को अपने और अपनो की जिंदगी बचाने के लिए कितने कष्ट भोगने पड़ रहे हैं मगर ये निष्ठुर व्यवस्था पूरी चपलता के साथ अपना खेल खेलती जा रही है . माना कि सरकारों से बड़ी लापरवाहियां हुयी कि उसने बड़े बड़े मेलों को आयोजित करने में सख्ती नहीं बरती,देश में कई राज्यों में विधान सभा चुनावी रैलियों का बड़े पैमाने पर आयोजन किया गया, उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव कराने पड़े जिसके दौरान सामजिक दूरी के नियम का पालन कराना किसी भी सरकार के लिए तब तक संभव नहीं था जब तक कि लोग खुद जागरूक ना हों मगर  जब इतनी बड़ी महामारी जो घर घर के भीतर मौत का खेल खेल रही हो तो उसके दौरान इतनी बड़ी रैलियों के आयोजन पर मद्रास हाइ कोर्ट तक ने गंभीर टिप्पणियां की और चुनाव आयोग के अधिकारियों पर हत्या के आरोप में मुक़दमा दायर कर देने की चेतावनी तक दे डाली तो तब पूरी शासन व्यवस्थाओं पर सवाल उठाना लाजिमी हैऔर यही वजह है कि विपक्ष को मोदी सरकार पर उंगली उठाने का मौका मिल गया और सोशल मीडिया में उसके खिलाफ काफी कुछ लिखा गया मगर इस सब के लिए सत्ताधारी हों या विपक्षी सभी राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं. उधर राज्य सरकारों और केंद्र के बीच शह और मात की राजनीतिक पैंतरेबाजी भी सभी ने देख ली है.पहले ऑक्सीजन फिर रेमडेसिविर दवा और अब वैक्सीन आपूर्ति के नाम पर केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच आरोप प्रत्यारोप पर तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक को बेहद तल्ख़ टिप्पणियां करनी पड़ीं. मगर आखिर केवल सरकार ही तो इसमें जिम्मेदार नहीं मानी जा सकती.एक जिम्मेदार नागरिक होने का फर्ज हममें से कितनों ने निभाया है ये सोचने वाली और समझने वाली बात भी है.आखिर ऐसा कौन सा कारण रहा होगा कि सामाजिक दूरी के नियम के पालन की बात तो छोड़िये देश में लोगों को मास्क ना पहनने पर पुलिस को चालान तक करने पड़े.सरकार पर लापरवाही के आरोप लगाना तो बेहद आसान सा काम है, सरकारी व्यवस्थाओं में कमियां निकालना भी आसान सा काम है मगर यदि इस नाजुक परिस्थिति के लिए कोई सबसे ज्यादा जिम्मेदार है तो वो हम हैं.हम आज की परिस्थिति में जब किसी अपने ख़ास सगे सम्बन्धी के सुख दुःख में शामिल होने से भी बच रहे हैं तो क्यों हमने पहले ही सरकार द्वारा बनाये गए मास्क का प्रयोग करने और सामाजिक दूरी का पालन करने के नियमों के पालन करने में अपनी समझ का प्रयोग नहीं किया.सरकार को जनता बनाती है और सरकार वो क़ानून बनाती है जिसमें जनता का हित हो. मगर हम खुद इतने गैर जिम्मेदार नागरिक बन चुके हैं कि कायदे क़ानून का पालन करना शायद हम भूल जाते हैं या उस को नजरअंदाज कर जाते हैं. तो अब हमें कोई सुधारेगा तो वो होगा हमारी खुद की मौत का डर जो आज हम सभी के सामने इस आपदा के रूप में प्रकट हो चुका है. इसलिए अभी भी संभलने का समय है और यदि अभी भी नहीं सम्भले तो शायद फिर संभलने का मौका भी ना मिले. सरकार तो यथा संभव व्यवस्था करेगी ही मगर यदि हर नागरिक स्वयं अनुशासित हो जाय तो पूरी लड़ाई नहीं तो आधी लड़ाई तो खुद ही जीती जा सकती है, बाकी आधी सरकारों के जिम्मे. सरकारें जिम्मेदारियां नहीं निभाएंगी तो ये तो सभी को मालूम ही है कि आखिर हम नागरिक ही तो सरकार बनाते हैं.

फिलहाल सरकार की ये सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन चुकी है कि वो जल्द से जल्द देश के हर एक नागरिक को टीका उपलब्ध कराये और आपदा में अवसर के मंत्र का पालन कर देश में नागरिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर सर्वोपरि ध्यान दे. हर नागरिक के स्वास्थ्य की देखभाल की जिम्मेदारी आखिर सरकार की है.देश में योग्य डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ की बहुत बड़ी कमी है.सरकारें अपने अपने क्षेत्रों में  बेहतरीन अस्पतालों की व्यवस्था करे ताकि हम जब इस महामारी के दूसरे जाल से निकलें तो उसके बाद एक नया ही भारत मिले जिसमें तीसरी चौथी आपदा लहर का इंतजार नहीं बल्कि हर बीमारी और किसी भी और कैसी भी महामारी के उपचार की पूरी व्यवस्थाएं पहले से मौजूद हों और फिर कोई एक भी मौत सिर्फ ऑक्सीजन न मिलने के कारण न हो और हर महामारी का विनाश हो सके…. बस एक ऐसे नए स्वस्थ भारत का निर्माण हो.

गणेश प्रसाद कोठारी

प्रधान संपादक

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