सूत न कपास और जुलाहों में लट्ठम लट्ठ.. उत्तराखंड राजनीति के दयनीय हालात

पिछले 14 फरवरी को समाप्त हुई  वोटिंग के पश्चात उत्तराखंड की राजनीति में एक अजीब सा दृश्य देखने को मिल रहा हैऔर शायद  उत्तराखंड की राजनीति में यह पहली बार घटित हो रहा है कि  सत्तारूढ़ पार्टी बी जे पी के कुछ वर्तमान विधायक गण वोटिंग खत्म होते ही अपने ही प्रदेश अध्यक्ष और अन्य पार्टी नेताओं पर पार्टी प्रत्याशी को ही हराने की कोशिश करने के आरोप लगा  रहे हैं और चुनाव परिणाम तक का इंतजार नहीं कर पा रहे हैं । भले ही बी जे पी अभी भी अबकी बार साठ पार के नारे के साथ डटी है मगर पार्टी  के लिए 10 मार्च को होने वाली मतगणना तक तो ये घटनाक्रम चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं। वोटिंग समाप्त हो चुकी है और सभी का भाग्य अगली 10 तारीख तक फिलहाल ई वी एम में बंद है  मगर कांग्रेस ऐसा मान चुकी लगती है कि प्रदेश के मतदाता उनके पक्ष में निर्णय कर चुके हैं और शायद इसी उम्मीद से  कांग्रेस के भीतर ही भीतर एक बड़ा संघर्ष चालू हो गया है जो मीडिया के माध्यम से भी लड़ा  जाने लगा है। दोनों बड़ी पार्टियां अपनी अपनी जीत का ढोल पीट रही हैं। उत्तराखंड के  राजनेताओं  में सत्ता और पद के लिए इतना उतावलापन देख जनता चुपचाप सारा तमाशा देख रही है। मगर जितना धन बल का प्रयोग इस छोटे से प्रदेश में इन चुनावों में देखा गया है वह आने वाले समय में इस प्रदेश की सेहत के लिए शुभ संकेत तो बिल्कुल भी नहीं है। और इसी धन बल से लड़े गए चुनाव के कारण ही प्रत्याशियों में बेचैनी बढ़ रही है। इन नेताओं ने प्रदेश की राजनीति को इतने हल्के स्तर पर ला खड़ा कर दिया है कि परिणाम आने तक का इंतजार करना भी  इनके लिए मुश्किल हो गया है और तमाम आरोप प्रत्यारोप वोटिंग के बाद भी जारी हैं। ये सब घटनाक्रम उत्तराखंड की दयनीय राजनीतिक दशा दिखाने के लिए काफी हैं और यही सबसे बड़ा सवाल भी है कि क्या राज्य के लिए अपना जीवन और इज्जत तक कुर्बान करने वाले लोगों ने ऐसे ही अलग  उत्तराखंड की कल्पना की होगी?

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