देहरादून/मसूरी
पिछले साल की कोरोना लहर से अभी उभर भी नहीं पाए थे कि कोविड की दूसरी भयानक लहर में फिर एक बार देश में एक अजीब-सी ख़ामोशी फ़ैल गयी है.दुकान न बाज़ार, कहीं कोई चहल-पहल नहीं है और न ही सड़कों पर गाड़ियां और लोग हैं. साप्ताहिक लॉक डाउन में कर्फ्यू का पालन तो हो रहा है मगर घरों के भीतर सिमटी जनता असल में मायूस और डरी हुई है . लोगों के चेहरों पर घबराहट साफ़ देखी जा सकती है .विशेषकर मसूरी में होटल रेस्टॉरेंट मालिक हों या उनमें काम करने वाले कर्मचारी सबके भीतर एक अजीब सी बेचैनी है. होटल गाइड हों या कुली या फिर टैक्सी चालक सभी घबराये हुए हैं. बड़ी मुश्किलों से पिछला साल किसी तरह से गुजर बसर कर चुके लोग अब निकट भविष्य के प्रति बेहद आशंकित से लगते हैं.मसूरी में रवि वार की साप्ताहिक बंदी के अलावा अन्य दिनों में दिन दो बजे तक ही बाजार को खोलने की अनुमति देने के सरकार के निर्णय को समझना बेहद कठिन है. एक ओर सरकार द्वारा जारी SOP के अनुसार राज्य से बाहर के किसी भी पर्यटक को RTPCR नेगेटिव रिपोर्ट के साथ प्रदेश में आने की अनुमति दी गयी है मगर दूसरी ओर दोपहर दो बजे ही तमाम होटल रेस्टॉरेंट समेत व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बंद करने के आदेश से पर्यटन व्यवसाय से जुड़े तमाम लोग निराश और हताश हैं.कमाल ये है कि लोगों को या सार्वजनिक आवागमन के साधनों पर शाम सात बजे तक कोई रोक नहीं है. इतने दुविधापूर्ण आदेश से मसूरी के समस्त व्यवसायी परेशान दिखते हैं क्योंकि फिलहाल उनका व्यवसाय लगभग चौपट हो चुका हैऔर सरकार द्वारा ऐसे प्रभावितों को आर्थिक सहायता देने का अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है. मसूरी के व्यवसाइयों और उनसे जुड़े स्थानीय बेरोजगारों का एक मात्र सहारा पर्यटन ही होता है इसलिए इतना तो तय है कि यदि देश में कोरोना का सिर्फ अगले दो महीनों में भी यही हाल रहा तो इन सभी के सामने बहुत बड़ा गंभीर आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा.
उधर देहरादून में शहर की सडकों और अस्पतालों में पुलिस तो है मगर दुश्मन तो अदृश्य है. इधर तो अदृश्य दुश्मन से संघर्ष कर रहे मरीजों और उनके परिवार वालों को अपनों के जीवन की चिंता सता रही है और उधर दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण कल हुयी 21 मरीजों की मौत की खबर ने उन्हें और डरा दिया लगता है.अस्पतालों में जमा भीड़ में सिर्फ एक ही चर्चा है कि कहीं उत्तराखंड में भी ये हाल न हो जाय. भले ही तीरथ सरकार ने साफ़ कहा है और भरोसा दिलाया है कि उत्तराखंड में अस्पतालों में ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. मगर इस संकट काल में लगता है कि सरकारों पर भी जनता का भरोसा उठ चुका है. आज वह अपनों के जीवन को बचाने के लिए अपने परिचितों और मित्रों से ऑक्सीजन सिलेंडर की जुगाड़ करते हुए नजर आ रहे हैं.ज्यादातर की आंखों में आंसू हैं पर दिल में एक आस है कि किसी तरह भी वह अपनों की रुकती हुई सांसों को बचाएंगे और यही एक उम्मीद उन्हें ताकत भी देगी क्योंकि सांस है तो आस है.