दुनिया को कोरोना के साथ जीना सीखना पड़ेगा…एक्सपर्ट्स

कोरोना कहर जारी.दुनिया में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या और इसके कारण मरने वालों की संख्या में भी रोज वृद्धि होती जा रही है. ज्यादातर जगहों पर इन मरीजों की देखभाल में जुटे डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मियों के पास पी पी ई की उपलब्धता न होने के कारण इनमें भी इस संक्रमण के फ़ैलने की खबरों से आम लोग भी और ज्यादा चिंतित हो रहे हैं. इस बीमारी के फ़ैलने के समय से ही यह माना जा रहा है कि इस वायरस का सबसे अधिक दुष्प्रभाव अधिक उम्रदराज लोगों पर पड़ रहा है विशेषकर पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोगों पर ही इसका खतरा है.मगर इस निष्कर्ष पर कुछ लोग उंगली उठाते हुए बताते है कि इस बीमारी से युवाओं की भी मौत हो रही है. इस आपत्ति के सन्दर्भ में एक्सपर्ट्स का ये मानना है कि हो सकता है कि ये कम आयु वर्ग के लोग भी पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हों जैसा कि कैंसर और हार्ट समस्या अब कम उम्र के लोगों में भी पायी जाती है और ऐसे कई युवा इन बीमारियों से भी मर जाते हैं यहाँ तक कि साधारण फ्लू से भी मौत हो सकती हैं या फिर उनकी समस्याओं का उनको पता ही नहीं हो. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में सांख्यिकी के प्रोफेसर सर डेविड स्पीजेहाल्टर ने सबूतों के साथ बताया कि 20 साल से अधिक आयु में कोरोना वायरस से मौत का ख़तरा उतना ही है जितना उन्हें आम दिनों में होता है .कोरोना वायरस से बच्चों को बेहद कम ख़तरा है, इतना कम कि हमें उनके लिए दूसरी चीजों की चिंता करनी चाहिए. एक साल की उम्र के बाद मौत की सबसे बड़ी वजहें कैंसर, एक्सीडेंट और आत्महत्या है.दूसरी ओर अमरीका के स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार कोरोना से मौत की संभावनाएं उतनी ही हैं जितनी कि रोज ड्राइविंग के दौरान होती हैं.एडिनबरा यूनिवर्सिटी और लंदन स्थित कुछ एक्सपर्ट्स ने इस सप्ताह एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है  जिनमे संक्रामक बीमारियों के एक्सपर्टऔर दल प्रमुख प्रोफेसर मार्क वुलहाउस भी हैं उनके अनुसार जिन लोगों में ख़तरा कम है, उनके लिए कोरोना वायरस एक दुष्ट फ़्लू से ज़्यादा ख़तरनाक नहीं है.मगर जिन लोगों में संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा होता है, अर्थात जो पहले से ही गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं उनके लिए कोरोना वायरस बड़ा खतरा बन सकता है. इसलिए हमलोगों ने इतने कड़े प्रावधान किए हैं और देश में लॉकडाउन लागू है.
मार्क वुलहाउस के मुताबिक वर्तमान परिस्थितियों में जोख़िम के साथ सही ढंग से संतुलन साधने की सबसे बड़ी आवश्यकता है. अभी क्योंकि इस बीमारी का वैक्सीन तैयार नहीं है मगर पूरी दुनिया में लॉक डाउन के कारण बेतहासा बढ़ने वाली गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी,राष्ट्रों की खतरनाक तरीके से डूबती अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक क्षेत्र और स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला बेतहासा खर्च पूरी दुनिया के लोगों के लिए कोरोना से भी बड़ा खतरा है. उन्होंने आगे कहा है कि हम संक्रमण के चपेट में आने वाले या आ सकने वाले कमजोर लोगों का बचाव बेहतर ढंग से कर पाएं तो दूसरे लोगों के लिए पाबंदियों को हटाना चाहिए.
इस टीम द्वारा इस सप्ताह एक रिसर्च पेपर  के मुताबिक जिन लोगों के कोरोना संक्रमण की चपेट में आने का ख़तरा ज़्यादा हो, उन्हें पूरी तरह सुरक्षित कर पाबंदियां हटाई जा सकती हैं. इनकी सलाह है कि कोरोना संक्रमित लोगों को पूरी तरह आइसोलेशन में रखा जाए और उनकी देखभाल करने  वाले लोगों को पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट उपलब्ध कराने के साथ साथ ही उनकी तुरंत टेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध करा दी जाए तो कई पाबंदियों को हटाना संभव होगा.इसी पेपर में लिखा गया है कि यदि सभी लोग सफाई का विशेष ध्यान रखें जैसे कि बार बार अच्छी तरह से हाथ धोना,कोरोना के लक्षण दिखने पर खुद को आइसोलेट कर देना और सोशल डिस्टन्सिंग का ध्यान रखा जाय तो कुछ ही महीनों में स्कूल आना जाना, रेस्टोरेंट में खाना खाना और सिनेमा देखना भी संभव हो सकेगा.हमें अब कोरोना के साथ ही जीना सीखना होगा. दुनिया बचानी है तो हमें ये करना ही होगा.

Source BBC..
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