कोरोना महामारी ने आज भारत सहित लगभग अधिकांश दुनिया को अपने अपने घरों के भीतर लॉक डाउन कर दिया है. भारत में लॉक डाउन का दूसरा दौर फिलहाल 3 मई तक जारी रहने के आदेश हो ही चुके हैं.देश के सभी धर्मस्थल,व्यापारिक संस्थान,स्कूल कॉलेज सब बंद हैं. इसी बीच शिक्षण संस्थाएं अपने अपने स्कूल के स्टूडेंट की पढाई ऑनलाइन क्लास के माध्यम से शुरू भी कर चुकी हैं. ZOOM जैसे ऐप्प खूब प्रचलन में हैं ,भले ही अब कुछ शिक्षण संस्थाओं ने इस ऐप्प पर भी सुरक्षा कारणों से रोक लगा दी है . मगर अपने प्रदेश में जहाँ इंटरनेट की स्पीड ही सबसे बड़ी समस्या हो,विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र और कस्बों में रहने वाले स्टूडेंट किस प्रकार से ऐसी सुविधाओं का लाभ उठाएंगे ,शायद ये किसी ने सोचा ही नहीं. कामकाजी लोगों को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा हैं मगर ये सब बड़े शहरों में रहने वाले लोग हैं जहाँ पर इंटरनेट स्पीड ज्यादा बड़ी समस्या नहीं हैं.हर युवा के हाथ में मंहगा स्मार्ट फ़ोन और लैपटॉप जरूर हैं,मगर पढाई के मामले में यही सबसे बड़ी बाधा है. लैपटॉप या डेस्कटॉप तो छोड़िये लगभग 40% बच्चों के पास तो सस्ता स्मार्ट फ़ोन रखने की हैसियत नहीं और आज की हालात में वो कर्जा लेकर भी इनको खरीद नहीं सकते,शायद यही कारण भी है कि कुछ संस्थाओं ने राज्य सरकारों से अनुरोध किया है कि फिलहाल इन सब वस्तुओं को भी आवश्यक दैनिक उपभोग की वस्तुओं की श्रेणी में शामिल किया जाय और इनकी ऑनलाइन खरीद की अनुमति दी जाय. दूसरी बात ये है कि जिन खुशनसीबों के पास स्मार्टफोन है तो वो भी इन पर ऑनलाइन पढाई में स्क्रीन शेयर आदि की जटिलता के कारण परेशानियां महसूस करते हैं.सरकार भले ही डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देना चाहती हो मगर व्यावहारिक सच्चाई तो यही है कि जब स्टूडेंट्स के पास स्मार्ट फ़ोन,लैप टॉप भी उपलब्ध न हों और न वो लॉक डाउन के दौरान बंद मार्केट से खरीद सकते हैं, और फिर सबसे जरूरी इंटरनेट की और वो भी कम से कम 2 एमबीपीएस की स्पीड से चलने वाला नहीं हो तो ऑनलाइन क्लासेज की सफलता में संदेह है. ये स्लोगन भी बन सकता है कि ..कोरोना से लडेगा इंडिया, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कितने भी हों मगर बिना तकनीक के ऑन लाइन कैसे पढ़ेगा इंडिया…..