मसूरी ,
वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद 2017 में एक finance bill के द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा की गई और 29 जनवरी, 2018 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने तत्काल प्रभाव से इलेक्टोरल बॉन्ड योजना 2018 को अधिसूचित भी कर दिया था। जिसके जरिए अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दिया जा सकता था।तब सरकार ने ये दावा किया था इस प्रकार से राजनीतिक फंडिंग के मामलों में पारदर्शिता बढ़ेगी। भारत के कोई भी नागरिक, कॉरपोरेट या अन्य संस्थाएं जो kyc वेरिफाइड हों वे स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद कर राजनीतिक पार्टियां को चंदे के रूप में दे सकते थे । इसकी विशेषता यह थी कि बॉन्ड पर चन्दा देने वाले का नाम नहीं होता था क्योंकि जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसके नाम से इस बॉन्ड को खरीदा जाता था जिसे बैंक में भुनाकर राजनीतिक दल रकम हासिल कर लेते थे। इस बिल की विशेषता यह भी थी कि दी गई चन्दा धन राशि पर इन्कम टैक्स की धारा 80जीजीसी और 80जीजीबी के तहत छूट देने का प्रावधान था। चुनावी बॉन्ड हर तिमाही की शुरुआत में सरकार की ओर से 10 दिनों की अवधि के लिए बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाते रहे हैं। इसी बीच उनकी खरीदारी की जाती थी। सरकार की ओर से चुनावी बॉन्ड की खरीद के लिए जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के पहले 10 दिन तय किए गए थे । परंतु लोकसभा चुनाव के वर्ष में सरकार की ओर से 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि तय किए जाने की योजना थी ।
इन बॉन्ड की अवधि केवल 15 दिनों की होती है और इसका इस्तेमाल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदा देने में किया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो। दरअसल इस योजना का शुरू से ही विरोध होता आया है विपक्षी काँग्रेस के कई सदस्यों ने लोकसभा और राज्यसभा में इस योजना का विरोध किया था। काँग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि चुनावी बॉन्ड जारी करने के कारण सरकारी भ्रष्टाचार को स्वीकृति दे दी गई है जिससे सियासत में पूँजीपतियों का दखल बढ़ेगा। उन्होंने कहा था कि 2017 से पहले इस देश में एक मूलभूत ढांचा था, उसके तहत जो धनी लोग हैं उनका भारत के सियासत में जो पैसे का हस्तक्षेप था उस पर नियंत्रण था, लेकिन 1 फ़रवरी 2017 को सरकार ने जब यह प्रावधान किया कि अज्ञात इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाएं जिसके न तो दानकर्ता का पता है और न जितना पैसा दिया गया उसकी जानकारी है और न ही उसकी जानकारी है कि यह किसे दिया गया. उससे सरकारी भ्रष्टाचार पर अमलीजामा चढ़ाया गया है। इसी मुद्दे पर कांग्रेसी सांसद शशि थरूर ने भी कहा था कि, “इसके जरिए कारोबारी और अमीर लोग सत्ताधारी पार्टी को चंदा देकर राजनीतिक हस्तक्षेप करेंगे। उन्होंने ये भी कहा था कि , “जब ये बॉन्ड पेश किए गए थे, तो हममें से कई लोगों ने गंभीर आपत्ति जताई थी लेकिन हमारी नहीं सुनी गई। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी कहा था कि “इलेक्टोरल बॉन्ड एक बहुत बड़ा घोटाला है, देश को लूटा जा रहा है”। राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर लिखा था कि “नए भारत में रिश्वत और अवैध कमीशन को चुनावी बॉन्ड कहते हैं.” इसी तरह अपने ट्वीट के जरिए प्रियंका ने भी लिखा था “आरबीआई को दरकिनार करते हुए और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को ख़ारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड को मंजूरी दी गई ताकि बीजेपी के पास कालाधन पहुंच सके. ऐसा लगता है कि बीजेपी को कालाधन ख़त्म करने के नाम पर चुना गया था, लेकिन यह उसी से अपना जेब भरने में लग गई. यह देश की जनता के साथ निंदनीय धोखा है.”
योजना के आरंभ में तो चुनाव आयोग ने भी कहा था कि इससे ‘चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर बुरा असर पड़ेगा’। मगर एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो इस तरह की फंडिंग के ख़िलाफ़ नहीं लेकिन चंदा देने वाले शख़्स की पहचान अज्ञात रहने के ख़िलाफ़ है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इस मामले पर सुनवाई नवंबर में पूरी कर ली थी मगर फैसला सुरक्षित रख कर कल फैसला सुनाकर केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक क़रार दिया है कोर्ट ने माना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इन बॉन्ड की बिक्री तुरंत बंद की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों को उन बॉन्ड्स को वापस करने का भी निर्देश दिया है जिन्हें भुनाया नहीं गया है। साथ ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वो जारी किए गए बॉन्ड का व्योरा 6 मार्च तक चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए और चुनाव आयोग को निर्देश दिए है कि वो 31 मार्च तक तमाम जानकारियाँ अपनी वेब साइट पर आम जनता के लिए उपलब्ध कराना सुनिश्चित कराए । फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले पर केंद्र सरकार खामोश दिख रही है मगर इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए काँग्रेस प्रवक्ता जय राम रमेश ने लिखा है कि ” इस फैसले का लंबे समय से इंतजार था ,ये एक बार फिर नोटों की ताकत पर वोटों की ताकत को स्थापित करेगा । सरकार चन्दा दाताओं को विशेषाधिकार देते हुए अन्न दाताओं पर अन्याय पर अन्याय कर रही है “। एडीआर के संस्थापक और ट्रस्टी प्रोफ़ेसर जगदीप छोकर कहते हैं, “ये फैसला क़ाबिल-ए तारीफ़ है. इसका असर ये होगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम बंद हो जाएगी और जो कॉरपोरेट्स की तरफ से राजनीतिक दलों को पैसा दिया जाता था जिसके बारे में आम जनता को कुछ भी पता नहीं होता था, वो बंद हो जाएगा. इस मामले में जो पारदर्शिता इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम ने ख़त्म की थी वो वापस आ जाएगी.”
बहरहाल लोक सभा के चुनाव बेहद नजदीक हैं और सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला केंद्र सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा सकता है मगर वर्तमान केंद्र सरकार की कार्यशैली को देखते हुए उनका पूरा प्रयास होगा कि चुनाव पूर्व किसी प्रकार से चन्दा देने वालों की सूची आम जनता को उपलब्ध न हो सके क्योंकि इससे फिलहाल कमजोर पड़ा विपक्ष फिर ताकत के साथ आक्रामक हो सकता है और सत्तारूढ़ गठबंधन की साख को बड़ा नुकसान भी पहुँच सकता है।