देहरादून/मसूरी
आपदा को अवसर में बदलना होगा, बस यही तो कहा था हमारे प्रधानमंत्री जी ने पिछले साल कोरोना की पहली लहर के बीच, मगर इस देश में प्रधानमंत्री जी की इस पॉजिटिव सलाह पर जनता ने कोई ध्यान दिया हो या ना दिया हो मगर सरकारों ने इस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा. पिछले साल आर्थिक कारणों से और कोरोना के दंश से डसे अपने गांव के खेत खलिहानों में लौटे प्रवासी लोगों के पास विकल्प रहे हों या न रहे हों परन्तु सरकारों के पास ढेर सारे साधन तो जरूर रहे होंगे कि वो आपदा से हलकान हुए इन लोगों को अवसर प्रदान करते ताकि वो अपनी रोजी रोटी की तलाश में फिर से वापस न जाकर अपने ही प्रदेश में रुक पाते. मगर सरकारें शायद ये काम करने के लिए नहीं बनायी जाती हैं. सरकार का मतलब राज करना रह गया हैं लोगों की व्यवस्था करना शायद उन्हें अपना उत्तरदाईत्व नहीं लगता.भले ही सरकार तो इस आपदा को अवसर में नहीं बदल पायी मगर हाँ आपदा को अवसर में बदलने के बहुत सारे उदाहरण अभी पिछले एक महीने के भीतर कोरोना की दूसरी बेहद खतरनाक लहर के दौरान जरूर मिल रहे हैं जब पैरासिटामोल जैसी आम बुखार की दवा अचानक बाज़ार में पहले से कई गुना ज्यादा कीमत में मिलने लगी,रेमिडेसिविर का इंजेक्शन बीस बीस चालीस हजार में ब्लैक में मिलने लगा, और मिला भी होगा तो शायद नकली होने का भी अंदेशा. गंभीर रूप से बीमार मरीज को किसी अस्पताल में बेड मिलना तो दूर की बात बन गयी.ऑक्सीजन सिलिंडर का तो कहना ही क्या ? किसी किस्मत वाले को मिल गया तो मिल गया और वो भी मुंह माँगी कीमत पर, मगर हाँ कुछ लोगों ने इस आपदा को अपने अवसर में बदलने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी और आत्मनिर्भर भारत का नारा देने वाला देश आज जिस हालत में दिख रहा है उसमें तो ऐसा लगता है कि सचमुच आज आम आदमी आत्म निर्भर सा हो गया है.उसे खुद ही अपने लिए अस्पतालों में जगह ढूंढनी पड़ रही है, खुद की या अपनों की सांस बचाने के लिए खुद ही ऑक्सीजन की व्यवस्था करनी पड़ी और खुद के हो या परिवार के सदस्य या सम्बन्धी की उखड़ती साँसों को बचाने के लिए इंजेक्शन और दवाइयों के लिए खुद ही भागदौड़ करनी पड रही है. इससे बड़ा आत्मनिर्भरता का उदाहरण तो पूरे विश्व में शायद ही कहीं मिल पाये. हाँ ये भी सच है कि कुछ लोगों या संगठनों ने व्यक्तिगत रूप से लोगों की बड़ी निस्वार्थ सेवा की है मगर बिना शोर शराबा किये,इनके लिए आभार और धन्यवाद के अतिरिक्त और कोई शब्द ही नहीं. मगर सबसे कड़वा सच तो ये है कि इस दूसरी भयानक लहर ने बिलकुल साफ़ कर दिया है कि इस देश में ही कुछ इंसान गिद्धों की तरह आपदा के भीतर भी बेईमानी से धन कमाने के अवसर ढूढते रहते हैं. एक ओर ब्रेट ली, नोकस पूरन,पैट कमिंस जैसे विदेशी खिलाड़ी इस आपदा में भारत की मदद करने के अवसर ढूंढते रहे और दूसरी ओर कुछ अवसरवादी हमारी देवभूमि में ही नकली रेमिडेसिविर के इंजेक्शन की फैक्ट्री खोल कर अपना काला कारोबार फैलाते रहे. अब तो बस हद हो चुकी और समय आ गया है कि ऐसे अपराधों के लिए कठोर से कठोर दंड निर्धारित किये जांय और देश के हेल्थ सिस्टम को चुस्त दुरुस्त बनाया जाय. देश के हर नागरिक के स्वास्थ्य का जिम्मा सरकार का ही होना चाहिए इसलिए राज्य और केंद्र सरकारें अपने तमाम राजनीतिक अंतर्विरोधों को परे रख कर देशहित में इस सन्दर्भ में युद्ध स्तर पर काम करें. हमें देहरादून से दिल्ली के लिए नए हाईवे नहीं चाहिए. हमें तो बस इतना चाहिए कि हमारे प्रदेश में हर बीमार को अच्छा अस्पताल मिले जिसमें उसकी अच्छी तरह से देखभाल हो सके और फिर कोई बदनसीब मरीज ऑक्सीजन न मिल पाने पर दम न तोड़े.
सम्पादक की कलम से ..