चाँद दिखने के साथ ही मुसलमानों का रमजान का पवित्र महीना शुरू हो गया है. लॉक डाउन के दौरान सभी धर्म स्थल आम लोगों के प्रवेश के लिए बंद हैं. मस्जिदों में सामूहिक नमाज तक बंद है. मुस्लिम धार्मिक गुरुओं ने भी लोगों को अपने घर पर रह कर ही नमाज पढ़ने की हिदायत दी है और छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर सभी लोग इस हिदायत का पालन भी कर रहे हैं.मगर इसके साथ ही ताजा विवाद मस्जिदों से अजान की घोषणा करने पर उठ गया. असलियत यही है कि हम सभी लोग अलग अलग धर्मो के होने के बावजूद एक दूसरे के सुख दुःख में साथ रहते हैं, मगर सच यही है कि हम एक-दूसरे के धर्म के बारे में पूरा तो छोड़िये बेसिक ज्ञान तक नहीं रखते और कभी भी सच जानने की कोशिश ही नहीं करते। आम गैर मुस्लिम आदमी को रमजान और अजान का अर्थ ही मालूम नहीं है, रमजान असल में इस्लामी कैलेण्डर का नवां महीना होता है और मुस्लिम समुदाय इस महीने को परम पवित्र मानता है। इस महीने को लोग अल्लाह से इबादत का महीना भी मानते है और रोजा यानी व्रत रखना होता है जिस दौरान पानी तक पीना मना होता है,इसके पीछे एक धारणा यह बताई जाती है कि लोगों को दूसरे भूखे इंसानों की पीड़ा का एहसास हो सके.सूर्योदय से थोड़ा पहले रोजा शुरू करने से पहले रोजेदार कुछ खा सकते हैं इसे सुहूर या सेहरी कहते हैं और शाम को रोजेदारों द्वारा व्रत तोड़े जाने पर कुछ खाना पड़ता है जिसे इफ्तार कहते हैं..रोजे को अक्सर खजूर खाकर खोला जाता है.
अब अजान का मतलब है..पुकारना या बुलाना….इसके लिए बाकायदा मस्जिद से लाउड स्पीकर द्वारा घोषणा की जाती है ताकि लोग नमाज के लिए मस्जिद में एकत्रित हो सकें…मगर लॉक डाउन में जब मस्जिदों में नमाज पर पाबंदियां लगी हुयी हैं तो अजान कैसा….बस यही विवाद का विषय बन गया था.दरअसल दिल्ली में दो सिपाहियों ने एक मस्जिद में अजान पर रोक लगा दी मगर उच्च अधिकारियों तक बात पहुँचाने पर मामले का पता चला कि वो सिपाही नमाज और अजान में भेद नहीं कर पाये थे. रमजान के दौरान सहरी और इफ्तार का समय बताने के लिए अजान की अनुमति है मगर मस्जिदों में एकत्रित होकर नमाज अदा करने पर अभी भी प्रतिबन्ध है.मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भी सभी लोगों को घर पर ही नमाज अता करने की हिदायत दी है और संतोष का विषय है कि लोग उसका पालन भी कर रहे हैं..