पूर्वी लद्दाख सीमा पर फ़िलहाल स्थिति आइबॉल टू आइबॉल सिचुएशन से बदल कर स्टेबल बट क्रिटिकल

देश दुनिया मसूरी

           

             गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच 15 जून को हिंसक झड़प के बाद पैदा हुए भारी तनाव के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अचानक लेह दौरा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की खामोश सक्रियता का असर आखिर कुछ रंग तो ले ही आया.पूर्वी लद्दाख में तनाव कम होने का पहला संकेत मिला है, जहां चीन की सेना ने गलवान घाटी के कुछ हिस्सों से तंबू हटा लिए हैं और उनके सैनिकों को पीछे हटते भी देखा गया।

             सोमवार को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा, 30 जून को चुसूल में चीनी और भारतीय कमांडर स्तर की वार्ता के तीसरे दौर के बाद दोनों ही पक्षों के बीच सहमति बनी थी कि पिछले दो राउंड के कमांडर स्तर की बातचीत में जो सहमति बनी थी  उस पर दोनों पक्ष अमल करेंगे जिससे सीमा पर तनातनी का माहौल कम किया जा सके,उन्होंने बताया कि इस दिशा में प्रभावी क़दम भी उठाए गए हैं.दूसरी और भारतीय अधिकारियों ने कहा है कि गलवान, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स इलाके में भारत और चीनी सैनिकों के बीच अब वैसी स्थिति नहीं हैं जिसे पहले ‘आइबॉल टू आइबॉल सिचुएशन’ कहा जा रहा था. क्योंकि चीनी सैनिकों ने अब इन विवादित जगहों से पीछे हटना शुरू कर दिया है.इन जगहों पर तंबू और अस्थायी ढांचे दोनों तरफ़ से हटाए जा रहे हैं और सैनिक पीछे हट रहे हैं.मगर खबर ये है कि चीनी सैनिक कराकोरम की चिंता के कारण पैंगोंग सो लेक से पीछे नहीं हट रहे हैं और देपसांग क्षेत्र में अभी भी मौजूद हैं.चीनी सेना ने पैंगोंग झील क्षेत्र में विवादित क्षेत्र फिंगर 4 पर अपना कब्ज़ा जमा रखा है. इस क्षेत्र पर चीन अपना दावा जताता आया है जबकि भारत फिंगर 8 तक अपना दावा जताता आया है.

          वर्तमान परिस्थिति के बारे में माना जा रहा है साल 2014 से पहले तक भारत और चीन के बीचआपसी समझ काफ़ी बेहतर थी मगर धारा 370 हटाने,लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के साथ नया नक्शा जारी करके उसमें अक्साई चिन को शामिल करना आदि जैसी कार्यवाहियों ने बीते कुछ सालों में चीन को बड़े पशोपेश में डाल दिया है. साथ ही साथ जिस चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक प्रोजेक्ट (सीपेक) में उसने इतना भारी निवेश सिर्फ इस इरादे से किया है ताकि अगर कभी पश्चिमी देश उसके व्यापारिक माल के समुद्री मार्ग से आवागमन में रुकावट पैदा करें तो वह इस बैकडोर से अपना माल आगे पहुंचा सके,भारत सरकार के विरोध के कारण चीन इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की सुरक्षा के प्रति भी सशंकित हो गया है.

       वर्त्तमान समझौता दोनों देशों के बीच जारी गतिरोध के तनाव को फिलहाल सिर्फ कम कर रहा है,दोनों ही पक्ष बातचीत से मामले को निपटने का भले ही दावा कर रहे हों लेकिन इस सीमा पर सैनिक और सैन्य सामग्री को लगातार पंहुचाया भी जा रहा है.रक्षा सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है कि लेह स्थित 14 कोर ने वहां दोगुने सैनिकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पिछले महीने माल-असबाब जुटाना शुरू कर दिया था।सरकार द्वारा इस क्षेत्र में तैनात सैनिकों के लिए सियाचिन में उपयोग में लाये जा रहे जैसे टेंट तैयार कराये जा रहे हैं.  भारतीय सेना ने आर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) से अत्यंत ठंडे मौसम (ईसीसी) में पहने जाने वाले कपड़ों की डिलीवरी तेज करने को कहा है। सेना चाहती है कि ओएफबी कानपुर में बने तीन परतों वाले ईसीसी 80 हजार जोड़ी कपड़ों की डिलिवरी जल्द से जल्द करे। हरेक वस्त्र शून्य से 50 डिग्री नीचे के तापमान और 40 किलोमीटर प्रति घंटे से चलने वाली हवाओं के बीच सैनिकों को बचाने के लिए डिजाइन किया गया है। ये इस बात का संकेत है कि सेना मानकर चल रही है कि लद्दाख सेक्टर में तैनाती लंबे समय तक रह सकती है। सेना ने जून में लेह में तैनात 14 कोर के तहत तैनात मौजूदा दो डिविजनों के अलावा दो और इन्फेंट्री डिविजन (करीब 30 हजार सैनिक) लद्दाख सेक्टर में सुरक्षा बढ़ाने के लिहाज से तैनात की हैं। इनमें से एक डिविजन पाकिस्तान से भी मुकाबले को तैनात है। एलएसी को बदलने की चीनी सेना की सबसे बड़ी कोशिश से निपटने में सेना की तीन से ज्यादा तैनात डिविजनों को एयरफोर्स के हथियारों से लैस अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों, एसयू-30-जेट और सी-17 हैवी लिफ्टर्स का साथ मिल रहा है। मगर दोनों देशों की सेनाओं का विवादित क्षेत्रों से अपनी सीमाओं को लौटने के क्रम में भी लगता नहीं कि ये मामला इतनी जल्दी समाप्त होने वाला है.पूर्वी लद्दाख सीमा पर फ़िलहाल स्थिति आइबॉल टू आइबॉल सिचुएशन से बदल कर स्टेबल बट  क्रिटिकल ही दिखती है.

.

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *