उत्तराखंड में होगा चुनावी घमासान..कौन गिरेगा धरती पर और कौन छूयेगा आसमान..

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क्या उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस की राह पर चल पड़ी है या फिर ये सब साधारण सी बातें लग रही हैं. पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर तीरथ सिंह रावत  को नया मुख्यमंत्री बनाते ही जिस प्रकार से नए निजाम द्वारा त्रिवेंद्र के लिए निर्णयों को बदलने के विषय में बयानबाजी की गयी उसे सीधे सीधे त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ नाराजगी के रूप में देखा गया और अब पिछले  तीन चार दिनों से कोरोना महामारी से पस्त और इससे निपटने में हुयी खामियों के कारण जनता की सरकार के प्रति नाराजगी का अंदेशा महशूस कर घबराई उत्तराखंड की बी जे पी सरकार के कैबिनेट मंत्रियों गणेश जोशी,हरक सिंह रावत  और पूर्व सी एम् त्रिवेंद्र रावत  के बीच मीडिया में  एक दूसरे के विरोध में दिये जा रहे बयानों और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक  द्वारा दिए गए बयानों के साथ साथ कल रायपुर कोविड केयर सेण्टर के सन्दर्भ में क्षेत्रीय विधायक उमेश शर्मा काऊ और जिले के कोविड प्रभारी मंत्री गणेश जोशी के परस्पर विरोधी विवादास्पद बयानों पर नजर डालें और उनका ध्यानपूर्वक आंकलन किया जाय तो यही लगता है कि प्रदेश बी जे पी के भीतर भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं है और अगर प्रदेश सरकार और संगठन ने इन विवादों और गैरजरूरी  बयानों पर समय रहते विराम नहीं लगाया तो उसका हाल भी प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जैसा हो जाने में भी देर नहीं लगेगी क्योंकि इस महामारी में जनता जिम्मेदार लोगों की बातों और उनके कार्यकलापों पर कुछ विशेष ध्यान दे रही है और इसका खामियाजा  पार्टी को अगले नौ महीनों के अंदर होने वाले विधानसभा चुनाव में भुगतना भी पड़ सकता है. विपक्ष के वर्तमान हालात और अभी अभी हुए उपचुनाव में जीत से उत्साहित बी जे पी को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि कमजोर और आपसी अंतर्विरोधों से ग्रसित विपक्ष उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता.जनता जब सरकार से नाउम्मीद और निराश हो जाय हो तो वह उसे झटका देने में कभी भी पीछे नहीं रहती.प्रदेश सरकार और संगठन को ये जरूर याद रहना चाहिए कि ये डबल इंजन की सरकार है तो लोगों को इससे उम्मीदें भी कई गुना होंगी.

जहां तक कांग्रे का सवाल है तो उसके भीतर ही भीतर इतना अंतर्विरोध पैदा हो चुका है कि संगठन के बड़े और प्रभावशाली नेता एक दूसरे की शक्ल देखना तो छोड़िये उनका नाम तक सुनकर उखड जाते हैं. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से बातचीत करने और गैर राजनीतिक लोगों के बीच चर्चाओं की बात करें तो कांग्रेस में पूर्व सी एम हरीश रावत  ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनको आगे रख कर और उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस बी जे पी से लड़ाई में मुकाबला कर सकती है और इसमें सच्चाई भी नजर आती है कि चाहे प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह हों या इंदिरा हृदयेश  या फिर कोई और नेता किसी में भी इतना राजनीतिक दम ख़म नहीं है कि वो बेहद मजबूत संगठन वाली बी जे पी से आर पार की लड़ाई लड़ सके. वैसे तो कांग्रेस के पास अभी भी गांव गांव और गली गली तक अपने सदस्य और संगठन मौजूद हैं मगर सब नहीं तो ज्यादातर अपनी पार्टी के भीतर खींचतान को देखकर हतोत्साहित और निराश बैठे हैं  और इन्हें सिर्फ और सिर्फ हरीश रावत के नाम पर ही खड़ा किया जा सकता है. ये बात कांग्रेस के सभी गुटों के नेता जितनी जल्दी समझ जांय कि पार्टी हित में अपनी अपनी गुटबाजी को भूलकर  हरीश रावत को प्रदेश में पार्टी नेता घोषित कर आगे आनी वाली चुनावी जंग में उतरा जाय तो उतना ही पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है वरना सभी का राजनीतिक करियर खतरे में पड़ सकता है.

जहां तक आज की बात है वर्तमान में धरातल पर सत्य यही है कि अधिकाँश लोग प्रदेश में बी जे पी और कांग्रेस के अलावा तीसरे विकल्प की भी बेसब्री से तलाश कर रहे हैं मगर इसी तीसरे विकल्प की दावेदार और हकदार दूसरी मुख्य विपक्षी पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल की हालत जनता को और खुद इस दल के शीर्ष नेताओं को भी पता है और ये इस प्रदेश का दुर्भाग्य भी रहा है कि उक्रांद जैसा क्षेत्रीय दल जिसके उत्तराखंड राज्य के 2002 में हुए पहले चुनाव में चार विधायक जनता द्वारा विधानसभा में बड़ी उम्मीदों के साथ जिताकर भेजे गए आज वही उक्रांद प्रदेश के लोगों में अपने प्रति सहानुभूति होने के बावजूद पिछले विधान सभा चुनाव में NOTA के 1%वोट से भी कम 0.7% वोट पा सका और आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए गंभीर प्रयास करता भी नजर नहीं आता और सिर्फ अखबारों और टी वी चैनल पर बयानबाजी के अतिरिक्त कहीं भी सक्रिय नजर नहीं दिखता. उक्रांद के अलावा कम्युनिस्ट पार्टियां और कई बने छोटे छोटे क्षेत्रीय दल भी सिर्फ उक्रांद को ही नुकसान पंहुचा रहे हैं.

वैसे तो प्रदेश के निर्माण के बाद शुरू में बहुजन समाज पार्टी का भी उत्तर प्रदेश से सटे एक क्षेत्र विशेष में अपना प्रभाव होने के कारण प्रदेश की राजनीति में काफी दबदबा था मगर अब उत्तर प्रदेश में पार्टी की ख़राब हालत के कारण उक्रांद की तरह वह भी लगातार अपना प्रभाव खोती जा रही है मगर क्योंकि उक्रांद एक क्षेत्रीय पार्टी है और कभी भी किसी भी चुनाव में क्षेत्रीय भावनाओं के बड़ी मात्रा में उभरने की उम्मीदों के कारण उसके भविष्य की संभावनाओं को बंद नहीं किया जा सकता मगर अगले चुनाव के बाद बी एस पी के गैर प्रासंगिक हो जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता और यही कारण है कि उसके स्थानीय नेता कांग्रेस और बी जे पी में अपना ठिकाना बना चुके हैं.

और इन सभी के बीच देश की राजधानी दिल्ली में पिछले छह सालों से राज गद्दी पर जमी हुयी अरविन्द केजरीवाल  की आप पार्टी भी तेजी से सक्रिय होकर प्रदेश में अपने पांव पसारती नजर आने लगी है और तीसरे विकल्प के रूप में अपने आप को प्रदर्शित करने में जुटी है. उसकी निगाह प्रदेश में बड़े बुद्धिजीवियों,करीब पच्चीस लाख युवा और डेढ़ लाख के करीब भूतपूर्व सैनिकों के बड़े वर्ग पर टिकी हुयी है.अभी हाल ही में आप के प्रदेश प्रभारी की उपस्थिति में प्रदेश के एक बेहद चर्चित और केदारनाथ पुनर्निर्माण के लिए प्रसिद्द कर्नल अजय कोठियाल  को पार्टी में शामिल कर और आप के प्रदेश पार्टी नेता के रूप में घोषित कर लड़ाई का एक नया मोर्चा खोल दिया है.पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों की सक्रियता और मेहनती कार्य प्रणाली के परिणाम से पार्टी द्वारा अब तक 12 लाख से ज्यादा सदस्य बनाने के दावे को भी नजरअंदाज करना कठिन होगा.उसकी रणनीति प्रदेश के उन नेताओं को पार्टी में जोड़ने की है जो जनता के बीच काफी लोकप्रिय और स्वीकार्य हैं. रविंद्र जुगरान  जैसे जनप्रिय व्यक्ति को पार्टी में शामिल करना उसी रणनीति की एक कड़ी मानी जा रही है और संभावना यही है कि चुनाव आते आते प्रदेश के कई पूर्व शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी भी पार्टी में शामिल होकर पार्टी की चुनावी संभावनाओं को बढ़ाने का प्रयास करेंगे..

अंत में लब्बोलिवाब यही है कि पार्टी में ताजा ताजा शुरू हुयी अप्रत्याशित गुटबाजी और कोरोना महामारी के बीच जनता को इलाज में  होने वाली परेशानियों और बेतहाशा हुयी मौतों को नजरअंदाज करना सत्ताधारी बी जे पी को महंगा पड़ सकता है जिसका फ़ायदा कांग्रेस उठाना चाहे तो उठाये या जनता की सहानुभूति पाने वाली उक्रांद या फिर आक्रामक और सुनियोजित रणनीति अपनाकर प्रदेश में पहला चुनाव लड़ने वाली आप पार्टी, घमासान होना तय है मगर चुनाव से पहले ही प्रदेश के सभी लोगों को निशुल्क टीका लगवाने में यदि सरकार कामयाब रही तो बी जे पी को इसका बड़ा चुनावी फ़ायदा मिलने की संभावना बहुत ज्यादा होगी.

कल का विषय….18<45 टीका करण..कब और कैसे होगा पूरा

लेखक:

गणेश प्रसाद कोठारी

प्रधान सम्पादक

(यह लेख पूर्णतः मेरे निजी विचारों और आकलन पर आधारित है. इसमें किसी व्यक्ति,पार्टी या समूह के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना या पक्षपात नहीं है)

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2 thoughts on “उत्तराखंड में होगा चुनावी घमासान..कौन गिरेगा धरती पर और कौन छूयेगा आसमान..

  1. संपादक महोदय
    आपने बहुत सुंदर विश्लेषण किया है ,देखने मे आ रहा है कि जिस तरह कांग्रेस अपने अंतर्कलह का शिकार हुई वर्तमान में भाजपा भी उसी राह पर है
    अभी कुछ उथल पुथल होना बाकी है अक्तूबर के प्रथम सप्ताह तक आपको उत्तराखंड की राजनीति का पूरा परिदृश्य आंकड़ों के साथ देने की पूरी कोशिश करूंगा , किसको कितनी सीटे मिलेगी किसकी सरकार बनेगी

    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी, उम्मीद करता हूँ आप हमेशा की भांति सहयोग करते रहेंगे

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